Friday, March 22, 2019

रंग, पानी और होली

होली की ढेर सारी शुभकामनाएं
मुझे लगता है कि होली हम सब मे बचपन की बहुत सारी यादें ताजा करती है: आज भी लगता है कॉलोनी की सड़कों पर पानी बिखरा हुआ है और उस रंगों से भरे पानी के साथ दौड़ता हुआ मैं। सभी दोस्तों को सुबह जल्दी खेलने के लिए बुलाना और रंगों से भरे हाथों से सबको रंग देना। बॉलीवुड के गानों को छतों पर बजाना ताकि कोई कभी हमारे जोश को कम ना कर सके। शाम की सूखी होली, जहां सभी रिश्तेदारों पड़ोसियों के साथ इकटठा होना और दही वड़े और काजू-किशमिश के साथ अन्य सूखे मेवों की दावत उड़ाना।
मुझे वह समय याद है जब मैंने पहली बार रंगों के बारे में सीखा था। मैं एक दो साल का था, जब मैंने सिर्फ एक तस्वीरों की किताब के जरिये सफेद, नीले, पीले, लाल, बैंगनी, हरे, नारंगी और काले रंग के स्पेक्ट्रम से परिचय किया था, तब बोलना सीखा था। मेरे प्राथमिक विद्यालय ने इन रंगों को एक नया अर्थ दिया। स्केच पेन और क्रेयॉन ने मुझे दर्शकों की बजाय एक कलाकार की तरह रंग समझने की अनुमति दी। मैंने अपना बचपन पेंटिंग कार्टून कैरेक्टर में बिताया। मिकी माउस और उसके गोल कान, डोनाल्ड डक और उसकी चोंच, मिन्नी माउस और उसकी आंखें, कितनी हसीन थी रंगों की वो जादुई दुनिया। 
कुछ साल बाद, इन रंगों ने अपना अर्थ बदल दिया। मैंने क्रिकेट खेलना और पीछा करना शुरू किया। अब नीले का मतलब भारत था, हरा पाकिस्तान था, लाल का मतलब जिम्बाब्वे, पीला ऑस्ट्रेलिया और काला, न्यूजीलैंड था।
जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, रंग अपना मतलब बदलते रहे। मेरे मध्य विद्यालय में, एक कैथोलिक स्कूल, मैंने पहली बार एक श्वेत व्यक्ति को देखा। सांता क्लॉस की तरह एक सफेद दाढ़ी के साथ, उन्हें फादर एलन के रूप में पेश किया गया था। वह नए हेडमास्टर थे, जो एक परोपकारी व्यक्ति होने के साथ साथ एक गोरी चमड़ी वाले व्यक्ति भी थे। मुझे याद है कि मेरे स्कूल जाने वाले दोस्त हेडमास्टर के साथ उनकी भूरी त्वचा से मेल खाने के लिए पाउडर और फेयरनेस क्रीम लगाते थे। हमारे बीच के गहरे रंग के लोग हेडमास्टर जी को विदेशी कह कर उनका उपहास उड़ाते थे। मैंने चीजों को नोटिस करना शुरू कर दिया। हमारी कक्षा में परियों का उपनाम कभी नहीं था। हम अपनी क्लास में किसी को गोरा तो किसी को काला कह कर आनंद लेते थे। रंगभेद से ग्रस्त समाज में, मीडिया और बॉलीवुड ने रूढ़िवादिता को बढ़ाने में अपना योगदान दिया। अधिकांश अभिनेता और अभिनेत्रियाँ गोर थे। खलनायक और वंचित हमेशा गहरे रंग के होते थे। जल्द ही, पुरुषों की ब्यूटी क्रीम के विज्ञापनों ने शाहरुख खान के साथ टीवी पर काम करना शुरू कर दिया! यह अब केवल अंधेरा सुंदर के रूप में मनाया जा रहा है, लेकिन केवल छोटे समूहों और कुलीन लोगों द्वारा बनाई गई फिल्मों में।
हाई स्कूल में, मैंने पढ़ना शुरू किया। इतिहास की किताबें, आत्मकथाएँ। मैंने नस्लवाद के बारे में सीखा, नस्लवाद के बारे में, अपने रंगों के कारण अफ्रीकी पुरुषों की गुलामी के बारे में। रंग, विशेष रूप से त्वचा, उपनिवेशवाद के पीछे मूल कारण था। यह स्किन टोन था जिसने कॉलोनाइजरों को खुद को दुनिया से वरिष्ठ बताने के बारे में सोचा। उन देशों को देखें जो उपनिवेश थे। उनमें से कितने सफेद थे? काले लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने में सदियों लग गयी लेकिन ये जंग आज भी जारी है।
रंग राजनीतिक हैं। रंग पहचान को परिभाषित करते हैं। झंडों में रंग होते हैं। आंदोलनों में रंग होता है, सबसे शानदार एक इंद्रधनुष है जो एलजीबीटीक्यू समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न से मुक्ति के लिए खड़ा है। विचारधाराओं का रंग है। साम्यवाद का लाल कुछ को प्रेरित कर सकता है, दूसरों को भयभीत कर सकता है। एक देश की खेल जर्सी में रंग होता है। होली की तरह ही, रंग लोगों को बांधते हैं लेकिन हममें से कुछ लोग असुरक्षित महसूस करते हैं, इसलिए वास्तविक जीवन में रंग प्रभावित करते हैं। जब मैं बहुत ज्यादा केसरिया या लाल या हरा रंग देखता हूं, तो मुझे भी अजीब सा डर घेर लेता है।
मुझे पानी पसंद है, और मैं ऐसा ही बनना चाहता हूं। यह बेरंग, शांत, ठंडा है। यह प्यार और स्वीकार है। यह अंतर नहीं करता है। यह हर किसी और किसी के रंग को प्राप्त करता है। मुझे पानी वाले रंग पसंद हैं। मुझे वे संभावनाएं पसंद हैं, जिनमें वे शामिल हैं, वे कैनवस जिन्हें वे चित्रित कर सकते हैं, वे आनंद ले सकते हैं। शायद इसलिए होली पानी के साथ खेली जाती है। मैं सिर्फ अपने संबंधित रंगों के साथ दुनिया को रंग देने की दौड़ में उम्मीद करता हूं की हम पानी के स्वभाव से जुड़े।

ऋतेश चौधरी

Wednesday, August 29, 2018

गाली का सामाजिक महत्व

बुरी मानी जाने वाली वस्तु का भी क्या सामाजिक महत्व हो सकता है? मुझे तो लगता है होता है । अब हम खोज रहे हैं गाली के समर्थन में तर्क। ऐसा कोई अक्षर नहीं जिससे किसी मंत्र की शुरुआत न होती हो। अब देखने वाली बात है कि गाली शब्द दो अक्षरों ‘गा’ और ‘ली’ के संयोग से बना है। जो कि खुद ‘ग’ तथा ‘ल’ से बनते हैं। अब जब ‘ग’ व ‘ल’ से कोई मंत्र बनेगा तो ‘गा’ और ‘ली’ से भी जरूर बनेगा। अब आज के धर्मपारायण, धर्मनिरपेक्ष देश में किस माई के लाल की हिम्मत है जो कह सके कि मंत्र का सामाजिक महत्व नहीं होता? लिहाजा निर्विरोध तय पाया गया कि ‘गा’तथा’ली’ से बनने वाले मंत्रों का सामाजिक महत्व होता है। जब अलग-अलग शब्दों से बनने वाले मंत्रों का है तो मिल जाने पर भी कैसे नहीं होगा? होगा न! हां तो यह तय पाया गया कि गालियों का सामाजिक महत्व होता है।

अरब देशों में तमाम लोगों का काम केवल एक पत्नी से नहीं चल पाता या जैसे अमेरिकाजी में केवल एक जीवन साथी से मजा नहीं आता वैसे ही ये दिल मांगे मोर की तर्ज पर हम और सबूत खोजने पर जुट ही गये। इतना पसीना बहा दिया जितना अगर तेज टहलते हुये बहाता तो साथ में कई किलो वजन भी बह जाता साथ में। हिंदी थिसारस समांतर कोश में गालियां खोजीं। जो मिला उससे हम खुश हो गये, मुस्कराने तक लगे । अचानक सामने दर्पण आ गया । हमने मुस्कराना स्थगित कर दिया।

हिंदी थिसारस में बताया गया है कि गाली देना का मतलब हुआ कोसना। अब अगर विचार करें तो पायेंगे कि दुनिया में कौन ऐसा मनुष्य होगा जो कभी न कभी कोसने की आदत का शिकार न हुआ हो? अब चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है लिहाजा उसके द्वारा किये जाने वाले कर्मों के सामाजिक महत्व की बात से कौन इन्कार कर सकता है? लिहाजा गाली देना एक सामाजिक महत्व का कार्य है।
इसी दिशा में अपने मन को आर्कमिडीज की तरह दौडा़ते हुये हमने अपनी स्मृति-गूगल पर खोज की कि सबसे पहले कोसने का कार्य किसने किया? पहली गाली किसने दी? पता चला कि हमारे आदि कवि वाल्मीकि ने पहली बार किसी को कोसा था। दुनिया जानती है कि काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी के जोडे़ में से नर पक्षी को बहेलिये ने मार गिराया था। इस पर मादा क्रौंच पक्षी का विलाप सुन कर वाल्मीकि जी ने बहेलिये को कोसा:-
मां निषाद प्रतिष्ठाम् त्वम् गम: शाश्वती शमा,यत् क्रौंच मिथुनादेकम् वधी: काममोहितम् ।
(अरे बहेलिये तुमने काममोहित मैथुनरत कौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी प्रतिष्ठा न मिले)
इससे सिद्ध हो गया कि पहली बार जिसने कोसा था वह हमारे आदिकवि थे। एक के साथ एक फ़्री के अंदाज में यह भी तय हुआ कि जो पहली कविता के रूप में विख्यात है वह वस्तुत: कोसना ही था। अब चूंकि कोसना मतलब गाली देना तय हो चुका है लिहाजा यह मानने के अलावा कोई चारा नहीं बचता कि पहली कविता और कुछ नहीं वाल्मीकिजी द्वारा हत्यारे बहेलिये को दी गयी गाली थी ।

Tuesday, March 4, 2014

नौकर की कमीज, विनोद कुमार शुक्ल


अर्थशास्त्र के शिक्षक ने कुछ दिनों के बाद उनको समझाया, "तुम्हारी पत्नी मर गयी. इससे तुम्हें बहुत नुकसान हुआ. स्कूल में मास्टरनी थी, दो सौ रुपये महीना कमाती थी. घर का खाना, दूसरे काम, बच्चों की देख-रेख, कपड़े धोना, झाडू लगाना बहुत से काम करती थी. कोई काम कराने वाली औरत होती तो इतने काम का कम-से-कम सौ रूपये लेती और रद्दी काम करती. इमानदारी से तुम्हारी गृहस्थी की देख-रेख नहीं करती. गन्दी होतीउज्जड होती, चोर होती. तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ बिस्तर पर सोती थी. अब तुम्हारे बिस्तर पर कोई नहीं सोयेगा. इसके लिए बाज़ार में तुम कितने भी सस्ते-से काम चलाओ, आधे घंटे के कम-से-कम दो रुपये लग जायेंगे.वह बिस्तर कैसा होगा, इसका अंदाज़ लगा लों. बदनामी का डर रहेगा. नौकरी जाने का भी डर रहेगा.- अब तुम हिसाब करके बतलाओ, एक महीने में तुम्हें कुल कितने रुपये का नुकसान हुआ?"
इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने दूसरी शादी कर ली."